उत्तराखंड

कांग्रेस आलाकमान चुनाव परिणाम से पहले और उसके बाद की स्थितियों के आधार पर अपनी रणनीति बना रहा

उत्तराखंड में कांग्रेस दूध की जली है, इसलिए छांछ भी फूंक-फूंक कर पीना चाहती है

उत्तराखंड की सियासत: कांग्रेस प्रत्याशियों उत्तराखंड विधानसभा चुनाव का नतीजा आने से पहले भाजपा और कांग्रेसी दिग्गज अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। लेकिन कांटे का मुकाबला होने की वजह से उनके दिल भी धक-धक कर रहे हैं। इस बीच सियासी हलकों में अटकलें तेज हैं कि कांग्रेस अपने जिताऊ माने जाने वाले प्रत्याशियों को राजस्थान या छत्तीसगढ़ भेज सकती है।

हालांकि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ऐसी किसी भी संभावना से साफ इनकार कर रहे हैं। गोदियाल कहते हैं कि उन्हें कोई डर नहीं है, लेकिन भाजपा येन केन प्रकरण सत्ता प्राप्त करना चाहती है। उत्तराखंड में कांग्रेस दूध की जली है, इसलिए छांछ भी फूंक-फूंक कर पीना चाहती है।

सियासी हलकों में यदि ये कयासबाजियां तेजी से हो रही हैं कि उसने अपने जिताऊ प्रत्याशियों को कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान व छत्तीसगढ़ भेजने की तैयारी कर ली है तो इसे कोई हैरानी वाली बात नहीं होगी। स्वयं गोदियाल कह रहे हैं कि 2016 में भाजपा ने जो किया, वह बताता है कि वह हर हाल में सत्ता प्राप्त करना चाहती है। वह कर्नाटक, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि भाजपा के लिए सत्ता के आगे कोई नैतिकता नहीं है।

बाहर से कांग्रेसी दिग्गज चाहे 40 से अधिक सीटें जीतने का दावा कर रहे हों, लेकिन धरातल से जो फीडबैक प्राप्त हो रहा है, उसमें वह अधिकांश सीटों पर कांग्रेस बेहद कड़े मुकाबले में फंसी है। सियासी जानकारों का मानना है कि हालात 2012 वाले हो जाएं तो कोई अचरज वाली बात नहीं होगी। 2012 में कांग्रेस 32 और भाजपा 31 सीटों पर सिमट गई थी। 10 मार्च को ईवीएम के पिटारे से नतीजों की कुछ ऐसी ही तस्वीर बनी तो इस बार भाजपा सरकार बनाने का दांव चलने से बिल्कुल नहीं चूकेगी।
कांग्रेसी हलकों में चर्चा गर्म है कि पार्टी आलाकमान चुनाव परिणाम से पहले और उसके बाद की स्थितियों के आधार पर अपनी रणनीति बना रहा है। पंजाब, गोवा और उत्तराखंड में कांग्रेस सत्ता प्राप्ति के लिए पूरी ताकत लगा रही है। जोड़ तोड़ और तोड़ फोड़ की राजनीति से बचाव के लिए कांग्रेस ऐसा कवच तैयार करने की सोच रही है कि जिसे भेदना भाजपा के लिए दुष्कर हो जाए। इसमें प्रत्याशियों और जीत के बाद विधायकों को अज्ञात ठिकानों पर भेजने का विकल्प भी शामिल है।

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