उत्तराखंड

कांग्रेस के चुनाव अभियान के सेनापति को छोड़ना पड़ा रामगर का रण

प्रबल दावेदार रणजीत सिंह रावत के बागी तेवरों के आगे पार्टी आलाकमान को अपने फैसले को बदलना पड़ा

कांग्रेस के चुनाव अभियान के सेनापति हरीश रावत को रामगर विधानसभा का रण छोड़ना पड़ा है। इस सीट पर कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें चुनाव मैदान में उतार दिया था। लेकिन टिकट के दूसरे प्रबल दावेदार रणजीत सिंह रावत के बागी तेवरों के आगे पार्टी आलाकमान को अपने फैसले को बदलना पड़ा। प्रदेश में जिस चेहरे को मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा है, उनका अनायास टिकट बदल दिया जाना सियासी हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है। एक टिकट के चक्कर में कांग्रेस को नैनीताल जिले की चुनावी चौसर पर उतारे गए एक नहीं चार-चार मोहरों को उलट पलट और अदल बदल करना पड़ा गया। टिकट बदले जाने से हरीश रावत व्यथित हैं। इसे सोशल मीडिया पर उनकी पोस्ट को पढ़कर समझा जा सकता है। उन्होंने रामनगर से चुनाव न लड़ने को भावनात्मक चोट बताया है।
उन्होंने अपनी व्यथा कुछ यूं बयान की। मैं भले ही चुनाव नहीं लड़ पा रहा हूं, मगर रामनगर हमेशा मेरे हृदय में रहेगा। खुद को अपराधी बताते हुए उन्होंने लिखा कि पार्टी का आदेश मानना उनका कर्तव्य है। हरीश की व्यथा से यही प्रतीत होता है कि उन्हें बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि पार्टी रामनगर से उनका टिकट बदल कर उन्हें लालकुआं विधानसभा सीट से उतार देगी। अंदाजा तो रामनगर से चुनाव लड़ने की तैयारी करते आ रहे रणजीत सिंह रावत को भी नहीं रहा होगा कि आलाकमान उनको सल्ट जाने का फरमान सुना देगा।
कांग्रेस ने हरीश रावत के धुर विरोधी रणजीत रावत को सल्ट विधानसभा से उम्मीदवार बनाया है। सल्ट विधानसभा सीट से रणजीत चुनाव लड़ते आए हैं। लेकिन 2017 का चुनाव उन्होंने रामनगर से ही लड़ा था और पिछले पांच साल से वह इसी सीट पर फोकस कर रहे थे। कांग्रेस अपने नए बदले दांव को अपने पक्ष में मान रही है।
पार्टी का मानना है कि दिग्गज हरीश रावत के लालकुआं से प्रत्याशी बनने का लाभ नैनीताल तराई की बाकी सभी सीटों पर मिल सकता है। कांग्रेस के लिए कुछ सुकून की बात यह है कि लालकुआं में संध्या डालाकोटी को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद से बागी नजर आ रहे पूर्व कैबिनेट मंत्री हरीश्चंद्र दुर्गापाल भी हरीश रावत के नाम पर नरम पड़ गए हैं। लेकिन अब डालाकोटी के तेवर तल्ख हैं और कांग्रेस के सामने उनकी नाराजगी को दूर करना भी चुनौती होगी। हेवीवेट होने के बावजूद हरीश रावत के लिए लालकुआं का समर बहुत आसान नहीं है।
चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष होने के नाते उनके ऊपर पार्टी के दूसरे प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार करने का भी दारोमदार है। रामनगर के रण में उतरने के बाद वह खुद को ज्यादा सहज पा रहे थे, लेकिन उसे छोड़ने के बाद लालकुआं के समर में उन्हें ज्यादा परिश्रम करना पड़ सकता है। उनके लिए दूसरी चिंता अनुपमा रावत हो सकती हैं, जिन्हें कांग्रेस ने हरिद्वार ग्रामीण से प्रत्याशी बनाया है। इस सीट पर हरीश रावत 2017 का विधानसभा चुनाव हार गए थे।

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