सरकारी स्कूलों में घट रही छात्राओं की संख्या , अभिभावक अब सरकार की हवाई योजनाओं के भरोसे नहीं !!!
एक ओर जहां सरकारी स्कूलों में छात्र संख्या बढ़ाने के तमाम प्रयास लगातार फेल हो रहे हैं वहीं दूसरी तरफ बची-खुची छात्रसंख्या को संभाल पाना भी शिक्षा महकमे के बस में नहीं रहा। प्रदेशभर के सरकारी स्कूलों से पिछले 4 साल में एक लाख से अधिक छात्र कम हुए हैं जिनमें 60% बेटियां शामिल हैं।
बालिका शिक्षा के नाम पर लाखों रुपये फूंकने के बावजूद बीते सत्र में सरकारी स्कूलों में प्राइवेट स्कूलों के बराबर भी छात्राओं ने दाखिला नहीं लिया। इन चार सालों में प्रदेशभर के सरकारी स्कूलों में 4.53 लाख तो प्राइवेट स्कूलों में 5.14 लाख छात्राओं ने दाखिला लिया था।इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि अभिभावक बेटियों को अब सरकार और उसकी हवाई योजनाओं के भरोसे छोड़ने के मूड में बिल्कुल नहीं है। यू-डाइस रिपोर्ट के अनुसार सत्र 2017-18 से 2020-21 तक सरकारी स्कूलों में छात्राओं की संख्या 13% कम हुई है।यानी की कक्षा एक से 12वीं तक की कक्षाओं में 63004 कम छात्राओं ने दाखिला लिया। 2017-18 सत्र में उत्तराखंड के सभी सरकारी-प्राइवेट, अर्द्ध सरकारी स्कूलों में कुल 11 लाख 17 हजार छात्राओं ने दाखिला लिया था। शिक्षा विभाग के स्कूलों में 5 लाख से अधिक छात्राएं पढ़ रही थी। अगले ही सत्र 2018-19 में शिक्षा विभाग के स्कूलों में छात्राओं की संख्या 30 हजार की गिरावट के साथ 4.86 लाख तक पहुंच गई।
बावजूद इसके बालिका शिक्षा को प्रोत्साहन देने की योजनाओं की मॉनीटरिंग जरूरी नहीं समझी गई। नतीजा ये हुआ कि 2019-20 में 14 हजार व 2020-21 में 18 हजार छात्राओं ने सरकारी स्कूलों से मुंह मोड़ लिया। छात्राओं की संख्या में लगातार दर्ज हो रही गिरावट का आंकड़ा सिर्फ शिक्षा विभाग और सरकारों के पास दस्तावेजी रूप में पड़ा हुआ है। बालिका शिक्षा की दशा सुधारने को कोई ठोस योजना फिलहाल सरकार या शिक्षा महकमे के पास नहीं दिखाई दे रही है।