विधानसभा चुनाव में भाजपा के इस दुर्ग को भेदना कांग्रेस के लिए सपना रहा
डोईवाला विधानसभा सीट पारंपरिक रूप से भाजपा के वर्चस्व वाली रही है। विधानसभा चुनाव में भाजपा के इस दुर्ग को भेदना कांग्रेस के लिए सपना रहा है। 2014 के उपचुनाव की जीत को अपवाद स्वरूप छोड़ दें तो कांग्रेस को यहां सभी चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा, लेकिन 2022 के समर में भाजपा अपने इस अजेय दुर्ग को लेकर पहली बार असमंजस में दिखाई दे रही है।
दिलचस्प बात यह है कि क्षेत्र के अधिकांश लोग यह मानते हैं कि पिछले पांच वर्ष में चुनाव क्षेत्र में विकास की गति धीमी नहीं पड़ी। भाजपा से जुड़े लोग विधि विवि, सीपैट, कास्ट कार्ड भर्ती केंद्र, डिग्री कॉलेज, कैंसर अस्पताल, ऑडिटोरियम, तहसील भवन, बस अड्डा, सूर्यधार झील, सड़कों, पुल जैसे फैसले और निर्माण त्रिवेंद्र के कार्यकाल की उपलब्धियां मानते हैं।
चुनाव क्षेत्र में त्रिवेंद्र के काम और महंगाई, बेरोजगारी और किसानों की नाराजगी के बीच भी जंग है। कांग्रेस और विपक्षी दल सत्तारोधी रुझान के साथ महंगाई और बेरोजगारी और स्वास्थ्य, शिक्षा से जुड़े मुद्दों को मुख्य चुनावी हथियार बना रहे हैं। किसान आंदोलन का भी एक क्षेत्र विशेष में प्रभाव रहा है, जिसका कांग्रेस फायदा लेने की कोशिश कर रही है।
विधानसभा क्षेत्र में पर्वतीय मतदाताओं की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। पहाड़ से पलायन लोग इस चुनाव क्षेत्र में बड़ी तादाद में बसे। सीट पर पर्वतीय और मैदानी मतदाताओं की संख्या लगभग बराबर पहुंच चुकी है। इनमें करीब 15 फीसदी मुस्लिम और सिख मतदाता हैं।
भाजपा और कांग्रेस डोईवाला विधानसभा सीट के दो पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी हैं। दोनों के प्रत्याशी अभी तय नहीं हो पाए हैं। इसलिए इस सीट पर सियासी हालात पर छाया कुहासा तभी कुछ हद छंटेगा जब दोनों ओर से प्रत्याशी घोषित होंगे।