उत्तराखंड में भू-कानून को लेकर गठित समिति की बैठक छह अप्रैल को – Himkelahar – Latest Hindi News | Breaking News in Hindi

उत्तराखंड में भू-कानून को लेकर गठित समिति की बैठक छह अप्रैल को

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 प्रदेश में भू-कानून में संशोधन को लेकर हो-हल्ला तो खूब मचा, लेकिन इसको नया स्वरूप देने के लिए संबंधित अधिकारी ही संजीदा नहीं दिखाई दे रहे हैं। भूमि कानून में संशोधन पर पुनर्विचार के लिए सरकार ने पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में समिति गठित की थी। पिछले दिनों समिति की ओर से इस संबंध में जिलों से तमाम सूचनाएं मांगी गई थीं, जो आधी-अधूरी भेज दी गई हैं।
इस पर समिति के अध्यक्ष ने कड़ा एतराज जताया है। जिलों से 10 दिनों के भीतर पुन: निर्धारित प्रारूप में सूचनाएं भेजने को कहा गया है। प्रदेश में भू-कानून की मांग को लेकर उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950) में संशोधन के अध्ययन एवं परीक्षण के लिए गठित समिति की अब तक दो बैठकें हो चुकी हैं।

अगली बैठक छह अप्रैल को आयोजित की जाएगी। इससे पूर्व समिति के अध्यक्ष पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार ने बताया कि पिछले दिनों चुनाव के कारण समिति का कार्य आगे नहीं बढ़ पाया, लेकिन इससे पूर्व जिलों से भू-कानून में परिवर्तन के बाद जमीनों की खरीद-फरोख्त के संबंध में जानकारी मांगी गई थी। अधिकतर जिलों ने आधी-अधूरी जानकारी ही उपलब्ध कराई है।

इसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया था कि जो भी जानकारी समिति को भेजी जा रही है, उसमें संबंधित जिले के जिलाधिकारी के हस्ताक्षर होने चाहिए, लेकिन कई जिलों से प्रशासनिक अधिकारियों ने ही अपने हस्ताक्षर कर रिपोर्ट भेज दी है।समिति देखना चाहती है कि राज्य में भू-कानून में परिवर्तन के बाद कितनी जमीनों की खरीद-फरोख्त हुई। जिन लोगों ने उद्योग, अस्पताल, होटल आदि के नाम पर जमीन ली थी, क्या उन्होंने संबंधित संस्थाएं वहां खड़ी भी की हैं या नहीं।
इसके अलावा इन उद्योगों में कितने स्थानीय लोगों को रोजगार मिला, किस वर्ष में कितनी जमीन बिकी, इत्यादि सूचनाएं मांगी गई थीं। सुभाष कुमार ने बताया कि कुछ ऐसे मामले भी संज्ञान में आए हैं, जिनमें उद्योग या अस्पताल के नाम पर जमीन ली गई और अब वहां फार्म हाउस खड़े कर दिए गए हैं। जिलों से इस संबंध में भी सूचनाएं मांगी गई थीं, जो समिति को नहीं मिली हैं। उन्होंने कहा कि जिलों से अब दस दिन के भीतर पुन: रिपोर्ट देने को कहा गया है। ताकि आगे की कार्रवाई की जा सके।
भू-कानून के परीक्षण और अध्ययन के लिए गठित उच्च स्तरीय समिति ने पिछले दिनों आम लोगों, संस्थाओं और तमाम स्टेक होल्डर्स से इस संबंध में सुझाव आमंत्रित किए थे। सवा करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले प्रदेश में समिति को मात्र दो सौ सुझाव प्राप्त हुए।
भू-कानून पर सबसे अधिक हल्ला मचाने वाली कांग्रेस पार्टी की ओर से इस संबंध में समिति को कोई सुझाव ही नहीं दिया गया। जबकि यूकेडी ने एक लाइन का सुझाव दिया है, जिसमें कहा गया है कि हिमाचल की तर्ज पर उत्तराखंड में भी भू-कानून लागू होना चाहिए।

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