
समाजवादी पार्टी का वारिस बनने के मुद्दे पर मुलायम सिंह यादव कुनबे में 5 साल पहले शुरू हुई राजनीतिक अदावत अब भी जारी है. शिवपाल सिंह यादव ने सपा के नवनिर्वाचित विधायकों की बैठक में नहीं बुलाए जाने से नाराज होकर फिलहाल शपथ ग्रहण करने से इनकार कर दिया है. चर्चाओं के मुताबिक वे अखिलेश यादव की ओर से बुलाई गई सहयोगी दलों के नेताओं की बैठक में भी शामिल नहीं होंगे.समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने हाल ही में यूपी असेंबली का चुनाव जीतने वाले पार्टी के विधायकों की बैठक बुलाई थी. इस बैठक में अखिलेश यादव को पार्टी के विधायक दल का नेता चुना गया. शिवपाल सिंह यादव इस बैठक के बाद से अखिलेश यादव पर भड़के हुए हैं. उनका कहना है कि वे जसवंत नगर सीट से एसपी के टिकट पर जीते हैं, इसलिए उन्हें भी इस बैठक में बुलाया जाना चाहिए था. वहीं सपा हाई कमान का कहना है कि शिवपाल सिहं यादव भले ही सपा के सिंबल पर चुनाव जीते हैं. लेकिन वे मूलत: सहयोगी दल प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष हैं. इसलिए शिवपाल समेत सहयोगी दलों के किसी भी नेता को इस बैठक में नहीं बुलाया गया. पार्टी ने कहा कि सहयोगी पार्टियों के नेताओं की बैठक बाद में बुलाई जाएगी.
हालांकि सपा की इस सफाई का शिवपाल यादव पर कोई असर नहीं पड़ा है. उन्हें लग रहा है कि अखिलेश यादव के इशारे पर उन्हें नीचा दिखाने के लिए जानबूझकर यह कदम उठाया गया है. इसलिए उन्होंने अपनी नाराजगी जाहिर करने के लिए फिलहाल यूपी असेंबली में विधायक पद की शपथ न लेने का फैसला किया है. सूत्रों के मुताबिक वे अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की ओर से बुलाई जाने वाली सहयोगी दलों की बैठक में भी शामिल नहीं होंगे. शिवपाल यादव सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई हैं. मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में वे पार्टी में नंबर-2 माने जाते थे. वर्ष 2012 में जब सपा सत्ता में आई तो शिवपाल सिंह यादव खुद को सीएम पद का दावेदार मान रहे थे. हालांकि मुलायम सिंह यादव ने पार्टी में अखिलेश यादव के पक्ष में माहौल बनाकर उन्हें सीएम बनवा दिया. जिससे शिवपाल सीएम पद की रेस में पीछे छूट गए.
दोनों में राजनीतिक तल्खी वर्ष 2017 में उस समय बढ़ गई, जब सपा असेंबली का चुनाव हार गई. इसके बाद पार्टी के एक हलके में शिवपाल सिंह यादव को पार्टी में अहम भूमिका देने की मांग तेज हुई. उसी दौरान मुलायम सिंह यादव के चचेरे भाई और सांसद प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने अखिलेश यादव को पार्टी अध्यक्ष बनाने का बीड़ा उठाते हुए अभियान छेड़ दिया. पार्टी में बदले माहौल का फायदा उठाते हुए अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने खुद को सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुलायम सिंह यादव को पार्टी संरक्षक घोषित कर दिया.उसके बाद शिवपाल के सामने कोई रास्ता नहीं बचा, जिसके चलते उन्होंने 2018 में अपना अलग दल प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली. इसके बाद दोनों दलों को 2019 के संसदीय चुनावों में फिर करारी हार झेलनी पड़ी. जिसके चलते चाचा-भतीजा को एक करने के लिए परिवार में कोशिश शुरू हुई. मान-मनौव्वल के बाद अखिलेश यादव ने 2022 के चुनाव में शिवपाल सिंह यादव की पार्टी के साथ गठबंधन किया लेकिन प्रदेश में केवल एक सीट दी गई. जसवंतनगर की इस सीट पर भी शिवपाल सिंह यादव को सपा के सिंबल पर चुनाव में उतारा गया.अब पार्टी सिंबल पर जीतने के बावजूद अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल सिंह यादव को फिर से किनारे कर दिया है. जिससे उनकी नाराजगी और बढ़ गई है. माना जा रहा है कि आने वाले वक्त में वे भी अपर्णा यादव की तरह अखिलेश यादव के खिलाफ कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं. जिसका खामियाजा सपा और अखिलेश यादव को भुगतना होगा.