योग का शाश्वत विज्ञान: परमसत्य से जुड़ने की अनोखी साधना

देहरादून — अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2025 के अवसर पर एक बार फिर ध्यान केंद्रित हो रहा है योग के उस शाश्वत विज्ञान पर, जिसे ऋषि परंपरा ने न केवल भारतवर्ष की आत्मा में प्रतिष्ठित किया, बल्कि समस्त मानवता के कल्याण के लिए विश्व को समर्पित भी किया।
योग को मनुष्य की आत्मा का ब्रह्म से पुनः मिलन मानने वाले परमहंस योगानन्द ने अपनी गीता-टीका ‘ईश्वर-अर्जुन संवाद’ में इस ज्ञान को स्पष्ट करते हुए कहा था कि योग कोई लुप्त हो सकने वाली विद्या नहीं, बल्कि यह प्रत्येक जीव की चेतना में निहित उस परमसत्य से जुड़ी अनुभूति है जो शाश्वत है। वे मानते थे कि आत्मा जब भौतिक चेतना के प्रभाव में आती है, तो वह मन, इंद्रियों और इच्छाओं में उलझकर दुःख का कारण बनती है। परन्तु जब वही चेतना आत्म-संयम और ध्यान के माध्यम से भीतर की दिव्यता को अनुभव करती है, तब आत्मा ब्रह्म की ओर आरोहण करती है—और यही प्रक्रिया योग है।
ऋषि पतंजली के सूत्र—“योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः”—भी इसी शांति और एकत्व की ओर संकेत करते हैं। आज आधुनिक जीवन की आपाधापी में मानसिक वेग को नियंत्रित करना चुनौती बन गया है, परंतु योग की वैज्ञानिक विधियाँ इसे संभव बनाती हैं।
संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 21 जून को घोषित अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस अब विश्वभर में भारतीय ज्ञान के इस अमूल्य उपहार का उत्सव बन चुका है। इस दिशा में परमहंस योगानन्द का योगदान अविस्मरणीय है, जिन्होंने अमेरिका में Self-Realization Fellowship तथा भारत में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया की स्थापना कर, क्रियायोग जैसे उन्नत ध्यानपथ को विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया।
योगानन्दजी की प्रसिद्ध रचना ‘योगी कथामृत’ के 26वें अध्याय में क्रियायोग की व्याख्या करते हुए उन्होंने लिखा, “एक विशिष्ट कर्म द्वारा अनंत परमतत्त्व के साथ मिलन ही योग है।” यह अभ्यास केवल संन्यासियों के लिए ही नहीं, बल्कि हर इच्छुक व्यक्ति के लिए उपलब्ध है।
योगदा सत्संग सोसाइटी की वेबसाइट yssi.org से गृह-अध्ययन पाठमाला लेकर कोई भी व्यक्ति इस क्रियायोग का अभ्यास आरंभ कर सकता है—और अपनी अंतर्निहित शक्ति को जाग्रत कर जीवन को एक नई दिशा दे सकता है।
इस योग दिवस पर आह्वान है कि हम सभी स्व-कल्याण की इस राह पर कदम रखें, और शरीर-मन को उस दिव्य ऊर्जा के योग्य बनाएं, जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड की आधारशिला है।