जब समाज में महिलाओं की स्थिति बहुत खराब थी. उनके खिलाफ भी महर्षि एक तार्किक और प्रभावी आवाज बनकर उभरे : पीएम मोदी
समाज सुधारक एवं आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती के उपलक्ष्य में साल भर चलने वाले समारोहों का प्रधानमंत्री मोदी ने उद्घाटन किया। इस कार्यक्रम में पीएम मोदी ने कहा कि, ‘जब किसी समाज में गुलामी की हीन भावना घर कर जाती है, तो आध्यात्म और आस्था की जगह आडंबर आना स्वाभिक हो जाता है. मनुष्य के जीवन में आत्मविश्वास हीन होता है और वह आडंबर के बल पर जीने की कोशिश करता है. ऐसी स्थिति में वेदों के बोध को महर्षि ने पुनर्जीवन दिया. उन्होंने समाज को दिशा दी.’ पीएम मोदी ने कहा, ‘महर्षि ने अपने तर्कों से सिद्ध किया कि खामी भारत के धर्म और परंमपराओं में नहीं है बल्कि हम उनके वास्तविक स्वरूप को भूल गए हैं और विकृतियों से भर गए हैं.’ पीएम मोदी ने कहा, ‘आप कल्पना करिये एक ऐसे समय में जब हमारे ही वेदों के विदेशी भाषियों को विदेशी नरेटिव को गढ़ने की कोशिश की जा रही थी. उन नकली व्याख्याओं के आधार पर हमे नीचा दिखाने की, हमारे इतिहास और परंपराओं को भ्रष्ट करने के प्रयास किए गए. तब महर्षि दयानंद के ये प्रयास एक बहुत बड़ी संजीवनी के रूप में समाज में एक नई प्राण शक्ति बनकर आगे आए. महर्षि जी ने सामाजिक भेदभाव, उच-नीच, छुआछूत ऐसी ही कई विकृतियों के खिलाफ एक सशक्त अभियान चलाया. ‘ पीएम मोदी ने कहा, ‘जब समाज में महिलाओं की स्थिति बहुत खराब थी. उनके खिलाफ भी महर्षि एक तार्किक और प्रभावी आवाज बनकर उभरे. उस वक्त स्वामी दयानंद ने महिलाओं के अधिकार की आवाज उठाई थी. उन्होंने महिला शिक्षा की बात की थी. महर्षि दयानंद ने महिलाओं के खिलाफ भेदभाव का खंडन किया. ये बातें आज से डेढ़ सौ साल पहले की हैं. आज भी कई ऐसा समाज हैं जहां बेटियां शिक्षा से अभी भी दूर रखी जा रही हैं.’ इससे पहले पीएमओ ने एक बयान जारी किया था जिसमें कहा गया था कि, ‘1824 में जन्मे महर्षि दयानंद सरस्वती ने अपने समय की सामाजिक असमानताओं से निपटने के लिए आर्य समाज की स्थापना की थी.’