चीन से लगी अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुड़ी दो सीमांत सड़कों के निर्माण को मिली मंजूरी।
उत्तराखंड में उत्तरकाशी जिले के गंगोत्री नेशनल पार्क में चीन सीमा से जुड़ी दो सीमांत सड़कों के निर्माण का रास्ता साफ हो गया है। इसी सप्ताह महाराष्ट्र में हुई राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की बैठक में इन सड़कों के निर्माण के लिए भूमि हस्तांतरण को मंजूरी दी गई है। वहीं, केदारनाथ और हेमकुंड साहिब रोपवे के प्रस्तावों पर तकनीकी दिक्कतों के चलते चर्चा नहीं हो पाई।29 जून 2020 को तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अध्यक्षता में हुई उत्तराखंड राज्य वन्य जीव बोर्ड की बैठक में इन सड़कों के प्रस्तावों को मंजूरी दी गई थी।
मंजूरी मिलने के बाद बॉर्डर तक जाने वाली दोनों सड़कों के निर्माण के लिए गंगोत्री नेशनल पार्क की करीब 62 हेक्टेयर वन भूमि की स्थानांतरण की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। भूमि स्थानांतरण की प्रक्रिया पूरी होते इन दोनों सामरिक महत्व की सड़कों के निर्माण का काम शुरू कर दिया जाएगा ।सीमांत उत्तरकाशी की नेलांग वैली में चीन से लगी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पहली सड़क सुमला से थांगला तक कुल लंबाई 11.85 किमी बननी है। इसके लिए 30.39 हेक्टेयर वन भूमि हस्तांतरित की जानी है। इस सड़क का इस्तेमाल आईटीबीपी बार्डर तक जाने के लिए पैदल ट्रैक रूट के तौर पर करती है। दूसरी सड़क मंडी से सांगचोक्ला तक कुल लंबाई 17.60 किमी बननी है।इसके लिए 31.76 हेक्टेयर वन भूमि हस्तांतरित की जानी है। राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की बैठक में इन सड़कों के सामरिक महत्व को देखते हुए वन भूमि हस्तांतरण के साथ निर्माण को मंजूरी दी गई है।
इसके बाद भारतीय सेना की पहुंच आसानी से सीमा तक हो सकेगी। बोर्ड बैठक में केदारनाथ और हेमकुंड साहिब रोपवे निर्माण के महत्वपूर्ण प्रस्ताव भी रखे गए थे। लेकिन, कुछ औपचारिकताएं अधूरी रहने के कारण दोनों प्रस्तावों पर चर्चा नहीं हो पाई। इन दोनों प्रस्तावों को अब अगली बोर्ड बैठक का इंतजार करना होगा। बैठक में प्रमुख सचिव वन आरके सुधांशु, चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन समीर सिन्हा सहित अन्य अधिकारी मौजूद थे। गंगोत्री नेशनल पार्क के भीतर चीन सीमा से लगी भारतीय सीमा में जिन दो सड़कों के निर्माण को को मंजूरी दी गई, यह पूरा क्षेत्र हाई एल्टीट्यूड में आता है। इसे शीत मरूस्थल भी कहा जाता है। यहां सड़क निर्माण करना किसी चुनौती से कम नहीं है। वृक्ष विहीन इस पूरे क्षेत्र में वायु के कम दबाव के कारण सांस लेने में भी परेशानी होती है। इन क्षेत्रों में अत्यधिक बर्फबारी के कारण यहां काम के लिए बहुत कम समय मिलता है। घाटी में मौजूद एक छोटी नदी को छोड़ दिया जाए तो दूर-दूर तक यहां पानी का नामोनिशान नहीं होता।