उत्तराखंड

उत्तराखंड वन विकास निगम को कंपनी एक्ट में लाने की सुगबुगाहट तेज

राज्य बनने के बाद एक अप्रैल 2001 को अस्तित्व में आए उत्तराखंड वन विकास निगम को कंपनी एक्ट में लाने की तैयारी है। इसके लिए शासन स्तर पर कवायद शुरू हो गई है। इस संबंध में शासन की ओर से वन विकास निगम प्रबंधन से प्रस्ताव मांगा गया था, जिस पर बीती 28 फरवरी को पहले दौर की चर्चा भी हो चुकी है। सरकार निगम को कंपनी बनाने जा रही है। इससे कर्मचारियों की बेचैनी बढ़ गई है। उधर, शासन स्तर पर हुई बैठक में निगम को कंपनी एक्ट में लाने से होने वाले नफा-नुकसान पर चर्चा की गई। लेकिन किन्हीं कारणों से बैठक पूरी नहीं हो पाई और इस पर कोई निर्णय नहीं लिया जा सका।  शासन के सूत्रों के अनुसार, कर्मचारियों के विरोध को देखते हुए अभी इस मामले को गुपचुप तरीके से अंजाम दिया जा रहा है। हालांकि प्रस्ताव में निगम को कंपनी एक्ट में लाने के बाद होने वाले नफा-नुकसान का आकलन किया जा रहा है।

वर्तमान में निगम में 2828 स्वीकृत पदों के सापेक्ष 1750 कर्मचारी अधिकारी कार्यरत हैं। जबकि 1078 पद खाली चल रहे हैं। निगम में कार्मिकों की कमी और नए कार्मिकों की भर्ती न होने से संस्थागत कार्यों में दिक्कत आने लगी है। वर्ष 2022 तक 20 प्रतिशत और कर्मचारी रिटायर हो जाएंगे। ऐसे में शासन की ओर से वन निगम को कंपनी एक्ट 2013 के दायरे में लाने पर वन विकास निगम प्रबंधन से प्रस्ताव मांगा गया था।

28 फरवरी को शासन में इस संबंध में एक बैठक बुलाई गई थी। हालांकि कुछ अधिकारियों की अनुपस्थिति और कुछ अन्य तकनीकी कारणों से प्रस्ताव पर प्रारंभिक चर्चा के बाद कोई निर्णय नहीं हो पाया। संभव है अगली बैठक में इस विषय पर कोई ठोस निर्णय ले लिया जाए। उधर, इस मामले में शासन स्तर से लेकर वन विकास निगम के अधिकारी कुछ कहने से बच रहे हैं।

वन बाहुल्य राज्य उत्तराखंड के आर्थिकी विकास में वन निमग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। निगम के पास वर्तमान में रिजर्व वनों में सूखे-टूटे, उखड़े पेड़ों का कटान, ढुलान, बिक्री इत्यादि का कार्य है। इसके अलावा आरक्षित वन क्षेत्रों की नदियों से उपखनिज चुगान, निकासी और बिक्री का कार्य किया जाता है। वन निगम की ओर से वर्ष 2018-19 में तीन सौ करोड़ रुपये, वर्ष 2019-20 में 304 करोड़ रुपये और वर्ष 2020-21 में करीब चार सौ करोड़ रुपये रॉयल्टी के रूप में सरकार को कमा कर दिए गए।

उत्तराखंड वन विकास निगम के प्रबंध निदेशक का कहना है कि वन विकास निगम में ढांचागत सुधार के लिए कुछ बिंदुओं पर चर्चा की गई। निगम की वित्तीय स्थिति संतोषजनक है, लेकिन इसमें और सुधार किए जा सकते हैं। निगम की ओर से संपादित किए जाने वाले कार्यों के अलावा भी अन्य क्या कार्य किए जा सकते हैं, इस पर भी चर्चा की गई। जहां तक निगम को कंपनी एक्ट में लाने की बात है, यह एक प्रारंभिक विचार है। इस पर आगे चर्चा की जाएगी। हालांकि अगर ऐसा होता है तो वर्तमान कर्मचारियों की स्थिति पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
अध्यक्ष वन विकास निगम कर्मचारी संघ वी एस रावत के अनुसार वन विकास निगम को कंपनी एक्ट में लाना या दूसरे विभाग में मर्ज करना आसान नहीं है। उत्तराखंड वन बहुल्य प्रदेश है। सर्वोच्च न्यायालय ने गोडावर्मन बनाम भारत सरकार याचिका में निर्णय दिया है कि सरकारी एजेंसी ही आरक्षित वन क्षेत्रों के अंतर्गत वृक्षों का विदोहन और उप खनिजों का चुगान आदि कार्य कर सकती है। इसलिए वन विकास निगम को कंपनी एक्ट में लाने या बंद करने का प्रश्न ही नहीं है। अगर ऐसा हुआ तो कर्मचारी संघ इसका पुरजोर विरोध करेगा।

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