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सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बने खान बाबू

बाबू खान का कहना है, मैंने इस्लाम धर्म नहीं छोड़ा है, सिर्फ कांवड़ लाने में आस्था है। इसलिए हर साल कांवड़ लेने के लिए हरिद्वार आता हूं।

हमारा खून का रिश्ता है सरहदों का नहीं, हमारे खून में गंगा भी है चिनाब भी है। मशहूर शायर कंवल जियाई का यह शेर शुक्रवार को सिर पर लगी टोपी और कंधे पर कांवड़ देखकर बागपत के रंछाड गांव के बाबू खान पर बिल्कुल सटीक बैठा। सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बने बाबू खान शुक्रवार को हरकी पैड़ी से कांवड़ में गंगाजल लेकर बागपत के पुरामहादेव के लिए प्रस्थान कर गए।
शुक्रवार को दोपहर के समय बागपत के गांव रंछाड़ निवासी बाबू खान जब सिर पर मुस्लिम टोपी व कांधे पर कांवड़ लेकर हरकी पैड़ी पर पहुंचे तो हर कोई उनको ही देखने लगा। बाबू खान ने गंगा मैया में स्नान करने के बाद पूजा अर्चना की और इसके बाद कांवड़ में गंगा जल रखकर बागपत के पुरा महादेव मंदिर के लिए रवाना हो गए।
बाबू खान ने बताया कि इस्लाम हमें सभी धर्मों का सम्मान करने की सीख देता है। बताया कि सुबह 5 बजे गांव की मस्जिद में नमाज पढ़ते हैं और फिर शिव मंदिर पर जाकर साफ सफाई करते हैं। बाबू खान का कहना है, मैंने इस्लाम धर्म नहीं छोड़ा है, सिर्फ कांवड़ लाने में आस्था है। इसलिए हर साल कांवड़ लेने के लिए हरिद्वार आता हूं। बाबू खान ने बताया कि जब वह पहली बार कांवड़ लेने के लिए आये थे तो घर में खूब झगड़ा हुआ। परिवार को जैसे-तैसे समझाया। 2018 में पुरा महादेव मंदिर पर जलाभिषेक करने के बाद अगले दिन मस्जिद में सुबह 5 बजे वाली नमाज पढ़ने के लिए गया। वहां पर लोगों ने बहिष्कार कर दिया। मस्जिद से बाहर निकाल दिया। इसके लिए मैंने कानूनी लड़ाई लड़ी और मस्जिद से मुझे बाहर निकालने वाले कई लोग जेल भी गए थे।

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