उत्तराखंड

सर्वे के मुताबिक, भाजपा को 42 से 48 सीटें मिलने की संभावना

अगर सर्वे सही साबित होता है तो भाजपा को पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में नुकसान होता हुआ दिखाई दे रहा है।

साल 2017 के विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी भाजपा ने मौजूदा कार्यकाल में 2 बार मुख्यमंत्रियों को बदला और अंत में युवा पुष्कर सिंह धामी को प्रदेश की जिम्मेदारी सौंप दी और आगामी चुनाव भी उन्हीं के नेतृत्व में लड़ने का मन बना लिया है। हालांकि पार्टी अंतर्कलह का सामना कर रही है।

 

तमाम पार्टियां मतदाताओं को लुभाने में जुटी हुई हैं। इसी बीच एक चुनावी सर्वे आया है। जिसमें बताया गया है कि कौन सी पार्टी कितनी मजबूत नजर आ रही है और उसे कितनी सीटें मिल सकती हैं। 70 सीटों वाले प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली पुष्कर सिंह धामी की सरकार है। भाजपा ने साल 2017 के विधानसभा चुनाव में 56 सीटें जीतकर रिकॉर्ड बनाया था। अभी तक भाजपा के अलावा कोई भी दूसरी पार्टी इतने बड़े आंकड़े तक नहीं पहुंची है। हालांकि प्रदेश की सत्ता भाजपा और कांग्रेस के इर्द-गिर्द ही रहती है। तभी तो साल 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज कर सरकार का गठन किया था।

किसे मिल सकती हैं कितनी सीटें ?

उत्तराखंड में कौन सी पार्टी का पलड़ा भारी है इसको लेकर  एक सर्वे किया था। जिसमें भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। सर्वे के मुताबिक, भाजपा को 42 से 48 सीटें मिलने की संभावना है। जबकि प्रमुख प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस 12 से 16 सीटों पर सिमट सकती है। इसके अलावा मतदाताओं को लुभाने का भरपूर प्रयास कर रही आम आदमी पार्टी को 4 से 7 सीटें मिलने की संभावना है। अगर सर्वे सही साबित होता है तो भाजपा को पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में नुकसान होता हुआ दिखाई दे रहा है।

देवभूमि के लोगों की पहली पसंद कौन ?

इस सर्वे में मुख्यमंत्री के तौर पर पहली पसंद के बारे में भी पूछा गया था। जिसके मुताबिक पुष्कर सिंह धामी को देवभूमि की जनता ने सबसे ज्यादा पसंद किया है। पुष्कर सिंह धामी को 40.15 फीसदी लोगों ने जबकि हरीश रावत को 25.89 फीसदी और कर्नल अजय कोठियाल को 14.25 फीसदी लोगों ने पसंद किया है।

साल 2017 के विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी भाजपा ने मौजूदा कार्यकाल में 2 बार मुख्यमंत्रियों को बदला और अंत में युवा पुष्कर सिंह धामी को प्रदेश की जिम्मेदारी सौंप दी और आगामी चुनाव भी उन्हीं के नेतृत्व में लड़ने का मन बना लिया है। हालांकि पार्टी अंतर्कलह का सामना कर रही है।

वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस की स्थिति भी कुछ ठीक नहीं है। हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने एक ट्वीट कर पार्टी से नाराजगी जताई थी। हालांकि 24 घंटे बाद अपना रुख बदलते हुए उसे रोजमर्रा वाला ट्वीट बताया था। इसके बाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात कर पूरी तरह से शांत हो गए और चुनावी रणनीति बनाने में जुट गए। जानकारों का मानना है कि प्रदेश कांग्रेस में भी नेतृत्व को लेकर घमासान मचा हुआ है।राजनीतिक जानकारों का मानना है कि उत्तराखंड में भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच में जबरदस्त टक्कर देखने को मिल सकती है। क्योंकि आम आदमी पार्टी न सिर्फ कांग्रेस का वोट काटेगी बल्कि भाजपा के भी वोट काटने का प्रयास करेगी। इतना ही नहीं दिल्ली के बाद आम आदमी पार्टी ने राष्ट्रीय स्तर पर खुद का मजबूत करने का काम भी शुरू कर दिया है। हालांकि साल 2014 का लोकसभा चुनाव आम आदमी पार्टी ने सभी 5 सीटों पर लड़ा था लेकिन किसी भी सीट पर कामयाबी नहीं मिली थी।

पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को 70 में से 56 सीटों पर जीत मिली थी। जबकि कांग्रेस को 11 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। इतना ही नहीं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को तो दोहरा झटका लगा था। उन्होंने हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा विधानसभा क्षेत्र से अपना पर्चा दाखिल किया था लेकिन दोनों विधानसभाओं की जनता ने उन्हें स्वीकार करने से इनकार कर दिया। जिसके बाद उन्होंने सामने आकर प्रदेश में पार्टी की हार की जिम्मेदारी ली। साल 2017 के चुनाव में 74 लाख से ज्यादा मतदाता थे। जिसमें 35 लाख से ज्यादा महिला मतदाता शामिल हैं।

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