उत्तराखंड

प्रदेश की राजधानी में 1952 से एक भी महिला विधायक नही

उत्तराखंड राज्य को बनाने में सबसे अधिक संघर्ष महिलाओं का माना जाता है। बड़ी उम्मीदों से बने राज्य की राजधानी में केवल प्रदेश बनने के बाद नहीं बल्कि 1952 से ही एक भी महिला विधायक नहीं बन पाई।

उत्तराखंड राज्य को बनाने में सबसे अधिक संघर्ष महिलाओं का माना जाता है। बड़ी उम्मीदों से बने राज्य की राजधानी में केवल प्रदेश बनने के बाद नहीं बल्कि 1952 से ही एक भी महिला विधायक नहीं बन पाई। आधी आबादी की हिस्सेदारी करने वाली महिलाएं आज भी प्रतिनिधित्व से वंचित हैं। उत्तराखंड बनने से पहले देहरादून जिले में मसूरी, चकराता और देहरादून तीन ही विधानसभा सीट थीं। 2002 में सीटों की संख्या बढ़कर नौ और वर्तमान में 10 हो चुकी है।

बावजूद इसके आज तक एक भी महिला प्रत्याशी जीतकर विधानसभा नहीं पहुंची। ऐसा भी नहीं है कि महिलाओं ने चुनाव न लड़ा हो। राज्य बनने के बाद से 2017 तक देहरादून में 45 महिलाएं चुनाव लड़ चुकी हैं लेकिन इनमें से एक भी जीत नहीं दर्ज कर पाई। देहरादून में वोटरों के रूप में महिलाओं की बात करें तो वर्ष 2002 में महिला मतदाताओं की संख्या 3.57 लाख, 2007 में 4.75 लाख व 2012 में 4.93 लाख थी। वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में देहरादून में महिला वोटर की संख्या 6.46 लाख थी।

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