उत्तराखंड

कुछ ही घंटों में टूट जायेगा उत्तराखंड को लेकर एग्जिट पोल के अनुमानों का भ्रम

10 मार्च को मतगणना के बाद खुलासा हो जाएगा कि प्रदेश के मतदाताओं ने उत्तराखंड में सत्ता की बागडोर किस दल के हाथों में सौंपी है

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव पर विभिन्न एजेंसियों और चैनलों के एग्जिट पोल के अनुमानों ने राज्य के लोगों को चकरा दिया है। कुछ एजेंसियों के अनुमानों में तो इतना अधिक अंतर है कि कोई भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलने की संभावना जता रहा है तो कोई कांग्रेस की सरकार बना रहा है।इसके चलते भ्रम की स्थिति बनती दिख रही है, जिसे टूटने में 24 घंटे और इंतजार करना होगा। 10 मार्च को मतगणना के बाद खुलासा हो जाएगा कि प्रदेश के मतदाताओं ने उत्तराखंड में सत्ता की बागडोर किस दल के हाथों में सौंपी है। उत्तर प्रदेश में सातवें चरण का मतदान समाप्त होने के बाद सबकी नजर एग्जिट पोल के नतीजों पर लगी थी।यूपी, पंजाब, गोवा और मणिपुर से लेकर उत्तराखंड तक सभी यह जानने को उत्सुक हैं कि किस दल की सरकार बनने की संभावना है। उत्तराखंड को लेकर एग्जिट पोल के अनुमानों ने भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है। इन अनुमानों को लेकर कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों के नेता अपनी-अपनी सरकार बनने का दावा कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का तो यहां तक कहना है कि 10 मार्च को चुनाव के जो परिणाम आएंगे, उसमें भाजपा एग्जिट पोल के अनुमानों से भी अधिक सीटें जीतकर सरकार बनाएगी। कहने का कुछ ऐसा ही अंदाज पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का भी है। रावत प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने का दावा कर रहे हैं। उनका कहना है कि एग्जिट पोल के अनुमानों से पार्टी के इस दावे पर मुहर लगा दी है।
एग्जिट पोल के अनुमानों को लेकर प्रदेश का जनमानस भी उलझन में है। अब उसकी नजर 10 मार्च को मतगणना पर लगी है। सियासी जानकारों का मानना है कि उत्तराखंड को लेकर एग्जिट पोल के अनुमान सटीक दिखाई दे रहे हैं। इन अनुमानों से यही प्रतीत हो रहा है कि प्रदेश में भाजपा या कांग्रेस दोनों में से कोई भी दल सरकार बना सकता है। अनुमानों में बड़े अंतर को लेकर जो भ्रम बना हुआ है, अब वह 10 मार्च को ही टूटेगा।
कुछ एग्जिट पोल के अनुमान से अगर उत्तराखंड में भाजपा की सरकार बनती है तो इसकी चार प्रमुख वजह होंगी। सियासी जानकारों का मानना है कि पहली वजह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति उत्तराखंड के जनमानस का लगाव है। चुनाव में बेशक मोदी लहर नहीं थी, लेकिन प्रचार से लेकर मतदान के दौरान मोदी एक बड़ा फैक्टर थे। दूसरी, राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में महिलाओं और बुजुर्गों का मोदी के प्रति स्नेह और सम्मान माना जा रहा है। जानकारों का कहना है कि इस बात की संभावना है कि महिलाओं और बुजुर्गों ने मोदी के चेहरे पर मतदान किया हो। तीसरी प्रमुख वजह केंद्र और राज्य में डबल इंजन की सरकार से कराए गए अवस्थापना विकास से जुड़े कार्य हैं। चौथी वजह मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सक्रियता मानी जा रही है। सत्ता की बागडोर हाथों में आने के बाद से धामी चैन से नहीं बैठ पाए और लगातार दबाव में रहे।
कुछ एग्जिट पोल के अनुमान प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा को बहुमत से दूर बता रहे हैं। यदि भाजपा सरकार बना पाने में नाकाम रहती है तो सियासी जानकारों की नजर में इसके लिए चार प्रमुख वजहें जिम्मेदार होंगी। पहली, पांच साल के कार्यकाल में तीन-तीन मुख्यमंत्री को बदला जाना, दूसरी कोविड की दुश्वारियों से उत्पन्न हालात, तीसरी बेरोजगारों के लिए नौकरियां खोलने के लिए देरी से प्रयास और चौथी पार्टी के विधायकों के प्रति सत्तारोधी रुझान बन सकते हैं।

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